Saturday, July 7, 2018

संविधान सेे जुड़े तथ्‍य


13 दिसंबर, 1946 को संविधान सभा की बैठक में मुस्लिम लीग व देशी रियासतों के प्रतिनिधियों ने बहिष्‍कार की स्थिति में संविधान समिति के उद्देश्‍यों संबंधी प्रस्‍ताव पण्डित जवारहलाल नेहरू व्‍दारा रखा गया। इसमें भारत को स्‍वतंत्र संप्रभुता सम्‍पन्‍न गणराज्‍य घोषित किये जाने का लक्ष्‍य निहित था। इस प्रस्‍ताव को पारित न किये जाने का सुझाव डॉ. जयकर ने प्रस्‍तुत किया। बहस के दौरान कांग्रेस के सदस्‍यों ने इसका विरोध किया। डॉ. आम्‍बेडकर ने चर्चा में भाग लेते हुये स्‍पष्‍ट किया कि शक्ति और बुध्‍दिमत्ता भिन्‍न चीजें हैं। बुधिमत्ता इस बात में है कि‍ इस प्रकार अलग अलग खेमों मे बंटे लोगों को साथ लेकर किसी सामान्‍य निर्णय पर पहुंचा जाये। यह जिम्‍मेदारी मुख्‍य रूप से बहुमत दल की है। उनका कहना था कि बहुमत की ताकत के आधार पर आप अपनी बात दूसरों पर लागू कर सकते हैं, लेकिन ताकत के आधार पर हमेशा के लिए आप लोगों को अपनी बात मानाने के लिये मजबूर नही कर सकते। ताकत के इस्‍तेमाल के विफल होने पर आप के पास समस्‍या के विकल्‍प का कोई हल नही बचा रहता है। इसके अलावा यदि ताकत में कोई चीज जीत भी ली जाती है तो आमतौर पर जीतने वाले को वह अपने मूल रूप नही मिलती क्‍योंकि संघर्ष के दौरान उसका रूप विनिष्‍ट या विकृत हो जाता है। इस प्रकार बल प्रयोग की कीमत में जितनी हानि उठानी पड़ती है जीत की स्थिति में प्राप्‍त विनिष्‍ट वस्‍तु से उसकी भरपाई नही हो पाती। सारांश रूप में डॉ. आम्‍बेडकर का सुझाव यह था कि इस मामले में हमें संयम और समझदारी से काम लेना चाहिए और जब तक सामाज के अन्‍य घटक बैठक में शामिल नही होते प्रस्‍ताव को पारित नही किया जाना चाहिये। सभा में डॉ. आम्‍बेडकर के तर्क सुनने के बाद कांग्रेस के सदस्‍यों ने डॉ. जयकर के सुझाव का विरोध नही किया। इतना ही नही डॉ. आम्‍बेडकर के प्रति उनके विचार (अथवा विरोधाभाव) में तब्‍दीली आई।

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