Tuesday, July 31, 2018

Sacred Games Hindi Web Series


लेखक विक्रम चंद्रा की किताब सेक्रेड गेम्स पर फिल्म बनाने की बात तब से चल रही थी जब अनुराग कश्यप विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म मिशन कश्मीर की शूटिंग के लिए उनको असिस्ट कर रहे थे. यह भी इत्तेफ़ाक़ की बात थी कि इसके ऊपर जब भी फिल्म बनाने की बात आई तब-तब धुरी पर हमेशा अनुराग कश्यप ही रहे हैं.
अनुराग कश्यप को दूसरा मौका तब मिला जब हॉलीवुड के मशहूर निर्देशक रिडली स्कॉट ने उनको इस किताब पर अमेरिका के पेड चैनल एएमसी के लिए एक टीवी सीरिज बनाने के न्यौता दिया. दूसरी बार भी बात इसलिए नहीं बनी क्योंकि अनुराग और इसके लेखक विक्रम चंद्रा इसको अंग्रेजी भाषा के बदले हिंदी में बनाने के पक्ष में थे. उनकी दलील यही थी कि कहानी का मूल तत्व इसके डायलॉग में छुपा है जो अंग्रेजी भाषा में गायब हो जाएगा.
तीसरी बार अनुराग को मौका मिला नेटफ्लिक्स की ओर से और सीरिज देखने के बाद यही लगता है कि अनुराग इस मौके के लिये घात लगा कर बैठे थे. कहना पड़ेगा कि इस मौके को अनुराग ने हाथ से जाने नहीं दिया है. लेकिन अनुराग से भी ज्यादा शाबाशी मिलनी चाहिए इस सीरिज के शो-रनर और सीरिज के दूसरे निर्देशक विक्रमादित्य मोटवाने को जिन्होंने किताब को एक तरह से जीवंत कर दिया है.

सरताज सिंह और गणेश गाईतोंडे के बीच के लुकाछिपी की कहानी
इस सीरिज़ में दो मुख्य किरदार है  - इंस्पेक्टर सरताज सिंह (सैफ अली खान) और गैंगस्टर गणेश गाईतोंडे (नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी). गणेश मुंबई का बेताज बादशाह है जिसके हाथ कई तरह के काले धंधों में सने हुए हैं. गणेश बेहद ही खतरनाक मुजरिम है और मुंबई पुलिस सालों से उसको ढूंढने में नाकामयाब रही है और अब आलम ये है कि उसकी फाइल भी बंद हो चुकी है.
अचानक एक दिन सरताज सिंह को गणेश का फ़ोन आता है और उससे मिलने की इच्छा जाहिर करता है. सरताज मिलने के साथ साथ उसके कॉल को भी ट्रेस करना शुरू कर देता है. जब मुलाकात होती है तब गणेश सरताज को ये जानकारी देता है की मुंबई में 25 दिन के बाद कुछ होने वाला है. इसके पहले कि वो सरताज को और जानकारी दे पाए, गणेश अपने ही रिवाल्वर से खुद को गोली मार देता है. इसके बाद की कहानी फ्लैशबैक में जाती है जहां पर गणेश गाईतोंडे के महाराष्ट्र के एक छोटे गांव से मुंबई के सरताज बनने की कहानी बताई गई है.
कहानी का फार्मेट नॉन लीनियर होने की वजह से यह अतीत और आज के बीच घूमती रहती है. इन सभी के बीच मुंबई का इतिहास कहानी के हर मोड़ पर अपनी दस्तक देता है. इसके बाद और कुछ कहना दर्शकों की मस्ती पर पानी फेरने के बराबर हो होता है.
सैफ और नवाज का शानदार अभिनय
ये नवाजुद्दीन सिद्दीकी और सैफ अली खान के करियर का सबसे बेहतरीन परफॉरमेंस है तो इसमें किसको शक नहीं होना चाहिए. अगर आपने किताब पढ़ी है तो आपको भी यही लगेगा की शायद सैफ और नवाज से बेहतर चुनाव और कोई नहीं हो सकता था.
सैफ की मुंबई पुलिस में नौकरी की थकान, पूरे व्यवस्था की वजह से चेहरे पर एक तनाव और फिर उसके बाद का गुस्सा - इन सभी को सैफ ने अपने बेहतरीन अभिनय से पूरे सीरिज को एक अलग ही रंग दिया है. लेकिन यहां भी नवाज़ुद्दीन बाकी कलाकारों पर भरी पड़े हैं. गणेश गाईतोंडे के किरदार में नवाज़ुद्दीन ने सभी जलवे बिखेरे हैं. नवाज़ का किरदार पूरी तरह से जुदा है. गणेश गाईतोंडे को अपनी जिंदगी में ना गाली देने से परहेज है और ना ही उसे किसी बात का डर है. निडरता क्या होती है ये नवाज के किरदार में झलकता है. इस तरह का किरदार बॉलीवुड में ना पहले कभी देखने को मिला था और शायद आगे भी ना मिले.
यह नेटफ्लिक्स जैसे प्लेटफॉर्म की खूबी है की इसको पूरी तरह से तराशा गया है और इसका नतीजा बेहद ही लुभाने वाला है. रॉ की रिसर्च एनालिस्ट की भूमिका में राधिका आप्टे भी खूब जची है तो वही दूसरी तरफ नीरज कबि सैफ के बॉस के रोल में और आमिर बशीर सैफ के साथ काम करने वाले पुलिस इंस्पेक्टर के रोल में पूरी तरह से जान डालने में कामयाब रहे है.
सेंसर बोर्ड के चाबुक से मुक्ति:
सेक्रेड गेम्स की चमक काफी हद तक स्मिता सिंह, वसंत नाथ और वरुण ग्रोवर की कलम की वजह से भी है. 1960 के बाद से देश में जो राजनीतिक और समाजिक परिवर्तन हुए थे  - चाहे वो आपात काल का समय हो या फिर बोफोर्स की बात - इन सभी को इस सीरिज़ में बखूबी पिरोया गया है. नेटफ्लिक्स की भी यह अच्छी स्ट्रेटेजी मानी जाएगी कि सीरिज के लिए उन्होंने दो निर्देशकों का चयन किया. अगर सैफ अली खान के किरदार के निर्देशन का दारोमदार मोटवाने को सौंपा गया तो वही दूसरी तरफ गणेश गाईतोंडे के क्रियाकलापों को न्याय देने के लिए अनुराग कश्यप को वो जिम्मेदारी दी गई.
सेक्रेड गेम्स के ऊपर बॉलीवुड के मौजूदा दौर में फिल्म बनाना मुश्किल ही नहीं असम्भव होता क्योंकि तब हर मोड़ पर सेंसर बोर्ड की कैंची उसके आड़े आ जाती. लेकिन नेटफ्लिक्स की वजह से इस मुश्किल को पार पा लिया गया है और शायद यही वजह है कि मोटवाने और कश्यप ने कहीं भी ढील नहीं दी है कहानी को रोचक और सही तरीके से कहने में.
जहां किरदार को गाली देनी है उसको गाली देने दिया गया है और जहां पर उसे सेक्स करना उसको वो भी कैमरा के सामने करने की आजादी दी गई है. कहने का सार ये है की कश्यप और मोटवाने को एक तरह से नेटफ्लिक्स की वजह से एक ओपन प्लेग्राउंड मिला है जहां पर खेल के सभी नियम उन्होंने ही निर्धारित किए हैं और खेला भी अपने तरीके से है.
लेकिन इन सबके के बावजूद, सेक्रेड गेम्स की कहानी बेहद ही लुभाने वाली है जो अनुराग कश्यप और विक्रमादित्य मोटवाने के हाथों में जाने के बाद निखर जाती है. इस सीरिज में ऐसे कई मौके आएंगे जिसको देखने के बाद आप शायद खुद को सहज महसूस नहीं करेंगे और इसके पीछे की वजह यही है कि हिंदी फिल्मों में आपने इसके पहले ऐसा कुछ देखा नहीं है. सेक्रेड गेम्स आपको सोचने पर विवश करेगी और मुमकिन है की कुछ समय के लिए आपको विचलित भी करेगी क्योंकि इसकी कहानी में किसी भी तरह की मिलावट नहीं है.
सेक्रेड गेम्स के बाद निश्चित रूप से बॉलीवुड को अपना कलेवर बदलना पड़ेगा क्योंकि कंटेंट के इस ज़माने में हिंदी फिल्मों की लड़ाई उन शानदार कंटेंट से है जो आज के समय में लोगों के बेडरूम में मात्र एक क्लिक पर उपलब्ध है. एक शानदार सीरिज होने के साथ साथ सेक्रेड गेम्स को इसलिए भी धन्यवाद देना पड़ेगा क्योंकि शायद इसके बाद से बॉलीवुड कुछ बदला बदला दिखाई दे.

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