भारत देश में 25 प्रतिशत दलित वर्ग के लोग हैं जो की किसी भी राजनैतिक पार्टी के लिए उतने की महत्वणूर्ण हैं जितना कि मुस्लिम समुदाय। यह ऐसे तबके हैं जो केवल वोट बैंक बनकर रह गए हैं। किसी भी राजनैतिक पार्टी को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि किस वर्ग का हित हो रहा है और किसका अहित। उन्हे तो बस सत्ता की भूख है। डॉ. आम्बेडकर ने गांधी जी से दलितों के लिए एक अलग धर्म की व्यवस्था करने की मांग की थी जिसे गांधी जी ने साफ अस्वीकार कर दिया था गांधी जी का मानना था कि एेसा करने से हिन्दू अलग-अलग भागों में बंट जाएंगे जो कि उचित नहीं होगा। अधिक प्रयत्नों के द्वारा दलितों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई जिसकी अवधि को 10 वर्ष के लिए निर्धारित किया गया एवं आगे चलकर इसकी अवधि बढ़ा दी गई एवं वर्तमान में इसे जारी रखा गया ।
सवर्णों का ऐसा कहना की अब देश में जात-पात का भेद नहीं है तो आरक्षण भी हटा देना चाहिए जिससे सभी को समानता का अधिकार मिले, यह पूरी तरह सत्य नहीं हैं। क्योंकि देश केे कई भागों में रूढि़वादिता आज भी देखने काे मिलती है और इसका मुख्य कारण लोगों की गलत एवं अंधी मानसिकता है जो कि उन्हे वास्तविक जीवन जीने नहीं दे रही है और यह जात-पात की खाई कम होती नहीं दिख रही है जो कि देश के लिए अच्छा नहीं है। और इसका एक कारण शिक्षा का आभाव भी है।
देश धर्मों के नाम पर तो बंटा ही था उसके साथ ही साथ जात-पात के नाम पर भी बंटा हुआ है। दलितों का मनना है कि अारक्षण से ही उनका कल्याण संभव है किन्तु क्या यह आरक्षण उन दलितों तक पहुंच पा रहा है जिन्हे इसकी वास्तविक आवश्यकता है, नहीं ऐसा नहीं हो रहा है। अधिकांशत: निचली जाति का सम्पन्न व्यक्ति ही इसका लाभ उठा रहा है और जो अति निर्धन है उसके पास तक वह लाभ नहीं पहुुंच पा रहा है। अप्रैल 2018 में हुए दलित आन्दोलन जो कि देश की लोकतन्त्र व्यवस्था पर बहुत बड़ा सवाल था। इसमें केन्द्र सरकार द्वारा किसी भी तरह का बल पूर्वक हस्तक्षेप नहीं किया गया और न हीं उन्हे रोकने के अधिक प्रयास किये गये जिससे यह आन्दोलन ने एक विकराल रूप ले लिया और काफी जन-धन का नुकसान हुआ। यदि सरकार के द्वारा किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप किया जाता तो दलित वोट बैंक पर बुरा प्रभाव पड़ता और सरकार के लिए अगले चुनाव में समस्या खड़ी हो जाती और सत्ता से भी हाथ धोना पड़ता।
ऐसे आन्दोलनों को विकराल रूप देने में विपक्ष का भी बहुत बड़ा योगदान होता है जो कि किसी भी कीमत पर सत्ता धारी दल को गिराने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं फिर चाहे इसमें कितनी भी जन हानि क्यों न हो रही हो। और ऐसे समस्त आन्दोलनों, विवादों या विरोध प्रदर्शनों में देश के आम नागरिकों का ही नुकसान होता है।
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